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विश्वास -24-Sep-2023

कविता -विश्वास 

पत्थर तो पत्थर
दिल सा मुलायम कहां!
किन्तु!
पत्थर दिल भी
मुलायम होता वहां
तो!
बेजान कठोर कर्कश
ठोकरें देने वाले पत्थर
को!
कैसे काट-छांट ,
तोड़-फोड़ कर
ठोकरें मार मारकर
इंसान सा रूप में
ढाल कर
अपने विश्वास को
उस मूर्ति में
डाल कर
कैसे!
सम्पूर्ण रूप को
एक रूप दे देता है
भगवान का,
जो!
पत्थर खुद हो जाता है
दिलवाला,करुणामय
कल्याणकारी मार्गदर्शी
जीवन देने वाला
खुद इंसान को,
हां!
हम भी
विश्वास से
विश्वास करते हैं
ढेरों कामनाएं
आकांक्षाएं लिए,
अर्पित सुमन करते 
पत्थर के भगवान को,
आज तो!
खुद पर
विश्वास,भरोसा 
रहा कहां!
तभी तो!
हम भाग रहे हैं
मन्नते लिए 
विश्वास से,
यहां -वहां
जहां -तहां। 
यह जानकर कि
इंसान ने ही
गढ़ा है भगवान को। 


रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर। 

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2 Comments

Milind salve

25-Sep-2023 05:12 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

24-Sep-2023 07:11 PM

👏👌

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